बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2B इतिहास - मध्यकालीन एवं आधुनिक सामाजिक एवं आर्थिक इतिहास (1200 ई.-1700 ई.) बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2B इतिहास - मध्यकालीन एवं आधुनिक सामाजिक एवं आर्थिक इतिहास (1200 ई.-1700 ई.)सरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2B इतिहास - मध्यकालीन एवं आधुनिक सामाजिक एवं आर्थिक इतिहास (1200 ई.-1700 ई.) - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- मुगलकाल में व्यापारी और महाजन की स्थितियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर -
व्यापारी
सैद्धान्तिक तौर पर वैश्यों से व्यापार करने की उम्मीद की जाती थी पर व्यवहार में अलग-अलग पृष्ठभूमि के लोग व्यापार में संलग्न हो सकते थे तथा पाए जाते थे। इस दौरान किसी खास प्रदेश में कुछ खास समुदायों और जातियों का वर्चस्व होता था।
बंजारे
हमारे स्रोतों में व्यापारी समुदाय के रूप में बंजारों के अनेक उल्लेख मिलते हैं। यह क्षेत्र विशेष में गांवों के बीच और गांवों और शहर के बीच व्यापार करते थे, कभी-कभी ये अंतर क्षेत्रीय स्तर पर भी व्यापार करते थे। वे ग्रामीण-शहरी व्यापार की महत्वपूर्ण कड़ी थे। बंजारे अपनी व्यापारिक गतिविधियाँ अनाज, दाल, चीन, नमक, आदि वस्तुओं तक ही सीमित रखते थे। उनके पास बड़ी संख्या में पशु (खासकर सामान ढोने के लिए बैल) होते थे और वे लोग एक स्थान से दूसरे स्थान जाकर सामान बेचते और खरीदते थे। तुजुक ए जहांगीरी में जहांगीर कहता है कि, 'इस देश में बंजारा एक खास वर्ग है जिनके पास हजार के आसपास बैल होते हैं। वे गांव से शहर अनाज लाते हैं और सेना के साथ भी चलते हैं। आमतौर पर बंजारे अपने परिवार और घर के सामान के साथ घूमते थे। इधर-उधर एक साथ कारवां में चलते इनके इस समुदाय को टाण्डा कहते थे। प्रत्येक टाण्डा का एक प्रधान होता था जिसे नायक कहते थे। कभी-कभी एक टाण्डा में 600-700 लोग (महिलाओं और बच्चों को मिलाकर) होते थे और प्रत्येक के पास अपने बैल होते थे।
बंजारे हिन्दू थे और मुसलमान भी। कुछ विद्वान उन्हें उनके व्यापार की जाने वाली वस्तुओं, अनाज, दाल, चीनी, नमक और लकड़ी के आधार पर विभाजित करते हैं।
बंजारे उत्तर भारत के कई भागों में व्यापार करते थे पर इसी प्रकार के और भी व्यापारी थे, जिन्हें दूसरे नामों से जाना जाता था। सिंध में इसी प्रकार का व्यापारी वर्ग कार्यरत था, जिसे नाहमर्दी कहते थे। हिमालय और मैदानी इलाकों के बीच भोटिया नामक घुमंतु व्यापारी कार्यरत थे।
विभिन्न प्रदेशों में व्यापारी
एक महत्वपूर्ण वैश्य उपजाति, बनिया उत्तर भारत और दक्खन का महत्वपूर्ण व्यापारी वर्ग था। वे हिन्दू और जैन (मुख्य रूप से गुजरात और राजस्थान में) धर्म मानने वाले थे। पंजाब में खत्री और गोलकुंडा में कोमाती भी इन्हीं के समरूप थे।
बनिया शब्द, संस्कृत शब्द वणिक अर्थात व्यापारी से गृहीत है। बनिया समुदाय अपने नाम के साथ उपनाम भी लगाया करता था जिससे उनके मूल स्थान का पता चलता था। अग्रवालों का मूल स्थान अमरोहा (अभी हरियाणा में) और ओसवालों का मारवाड़ में ओसी था। मारवाड़ के व्यापारियों की संख्या सबसे अधिक थी और इन्हें मारवाड़ी के नाम से जाना जाता था। वे देश के सभी हिस्सों में फैले हुए थे और हमारे अध्ययन काल के दौरान सर्वप्रमुख व्यापारी समुदाय था। इन व्यापारियों के बीच घनिष्ठ जातिगत बंधन था। इनकी अपनी परिषद् (महाजन) भी होती थी।
समकालीन यूरोपीय यात्रियों (लिनशोटर 1583-1589; टैवर्नियर 1656-1667) ने बनियों की व्यापारिक निपुणता की दाद दी थी और उनकी लेखा-बही सम्बन्धी योग्यता की सराहना की थी। बंजारों के विपरीत बनिया विभिन्न प्रकार की गतिविधियों में कार्यरत थे। ग्राम स्तर पर वे अनाज तथा अन्य कृषि उत्पादों का व्यापार करते थे। वे महाजन के रूप में भी कार्य करते थे, कृषकों तथा राज्य अधिकारियों और कुलीनों सहित अन्य व्यक्तियों को ऋण प्रदान करते थे। शहरों में वे अनाज, कपड़े, सोने, चांदी, आभूषणों, मसालों तथा अन्य विविधतापूर्ण उत्पादों में तिजारत करते थे। कुछ के पास लाखों रुपयों की सम्पत्ति थी। वे समुद्री जहाजों के स्वामी भी थे। समस्त समुदाय अपनी सादगी तथा मितव्ययिता के लिए जाना जाता था।
पंजाब में खत्री प्रमुख व्यापारी समुदाय था। सिख धर्म संस्थापक गुरुनानक भी खत्री थे। इनमें से कईयों ने इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया। इस समुदाय में हिन्दू भी थे, मुसलमान भी और सिख भी।
13-17वीं शताब्दी में दिल्ली, पंजाब और सिंध में कार्यरत मुल्तानी प्रमुख व्यापारी समुदाय था। हमारे अध्ययन काल में भी उनका उल्लेख मिलता है।थे
बोहरा गुजरात के महत्वपूर्ण व्यापारी थे। वे ज्यादातर मुसलमान थे। वे शहरी समुदाय और मुख्य तौर पर गुजरात और अन्य पश्चिमी इलाकों में बसे हुए थे। गुजरात के अलावा उज्जैन और बुरहानपुर में भी उनकी कुछ बस्तियां थीं। मुल्लाह मुहम्मद अली और अहमद अली जैसे बोहरा व्यापारियों के पास लाखों रुपयों की संपत्ति थी। पश्चिमी तट पर व्यापार में संलग्न मुसलमान व्यापारी समुदायों में खोजाह और गुजरात में कच्छ के मेमन भी प्रमुख थे।
दक्षिण भारत
इस उपमहाद्वीप के दक्षिण भाग में कई व्यापारिक समुदायों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई श्री। चेट्टी ऐसा ही एक समुदाय था। यह शब्द संस्कृत श्रेष्ठी (सेठ) से गृहीत है। संभवत: चेट्टी काफी धनाढ्य व्यापारी थे। कोरोमंडल तट से लेकर उड़ीसा तक के व्यापारियों को क्लिंग (Kling) के नाम से जाना जाता था। कोमाती भी एक व्यापारी वर्ग था। वे मुख्यतः कपड़े के दलाल थे और देश के अंदरूनी इलाकों से बंदरगाहों तक माल लाने का काम करते थे। वे मुख्यतः तेलुगू भाषी थे।
चेट्टी की तरह चूलिया भी एक व्यापारी समुदाय था जो चार समुदायों में विभक्त था। इनमें मराक्कयार सबसे धनाढ्य व्यापारी थे और ये तटीय और दक्षिण-पूर्वी एशियाई व्यापार में संलग्न थे। यह काफी गतिमान समुदाय था और इनमें से कई श्रीलंका, मालदीव, मलक्का, जोहोर, जावा तट, स्याम और बर्मा जाकर बस गए थे। भारत में दक्षिण में कोरोमंडल, मदुरा, कुड्डालोर, पोर्टो, नोवा, नागोल, नागपट्टनम, कोयलपट्टनम, आदि स्थानों में सक्रिय थे। वे मुख्य रूप से वस्त्र, सुपारी, मसाले, अनाज, सूखी मछली, नमक, मोती और बहुमल्य रत्नों का व्यापार करते थे।
कोरोमंडल से मालाबार और श्रीलंका तक चुतियन पारव नामक समुदाय व्यापार में सक्रिय था। तटीय व्यापार और दलाली में उन्हें विशेषता प्राप्त थी।
मुसलमानों में, गोलकुंडा के मुसलमान समुद्रपारीय जहाजरानी में संलग्न थे। मद्रास दक्षिण और बंगाल प्रदेश में बंगाल की खाड़ी में वे प्रमुख व्यापारी थे। भारतीय अरब मूल के मोपिल्ला मुसलमान भी इस क्षेत्र में कार्यरत महत्वपूर्ण व्यापारी थे।
मद्रास प्रदेश में गुजरती व्यापारी भी कार्यरत थे।
विदेशी व्यापारी
इस काल के लगभग सभी वाणिज्यिक केन्द्रों में विदेशी व्यापारियों की उपस्थिति का उल्लेख मिलता है। अन्य विदेशी व्यापारियों में आरमीनियन सर्वप्रमुख थे। वे कपड़े से लेकर तंबाकू तक अनेक प्रकार की वस्तुओं का व्यापार करते थे। वे बंगाल, बिहार और गुजरात में अधिक सक्रिय थे। खुरासानी, अरब और इराकी भी अक्सर भारतीय बाजारों में काफी संख्या में आते रहते थे।
महाजन और सर्राफ
उत्तर भारत के बड़े भाग में परंपरागत व्यापारीगण व्यापार के साथ-साथ ब्याज पर रुपया भी देते थे। गांव में परंपरागत बनिया किसानों को राजस्व का भुगतान करने के लिए भी उधार दिया करता था। शहरों तथा बड़े स्थानों पर भी व्यापारी महाजन के रूप में कार्य करते थे।.
सर्राफ भी व्यापार में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते थे। उनके तीन कार्य थे - (1) मुद्रा विनिमयदाता के रूप में; (2) बैंकर के रूप में; और (3) सोना, चांदी और गहने के व्यापारी के रूप में। यहाँ हम पहले दो कार्यों पर चर्चा करेंगे, तीसरा कार्य किसी भी अन्य वस्तु के व्यापार की भांति ही था।
सर्राफ सिक्के की धातुगत शुद्धता और वजन के पारखी और विशेषज्ञ माने जाते थे। वे धातु की मुद्रा की विनिमय दर भी निर्धारित करते थे। टैवर्नियर के अनुसार 'भारत के किसी गांव में अगर कोई सर्राफ (cherab) न हो तो निश्चय ही वह काफी छोटा गांव होगा। वह बैंकर के रूप में लोगों के पैसे का लेन-देन करता था और हुंडियां भी जारी करता था। '
सर्राफ मुगल मुद्रा ढलाई व्यवस्था का भी एक अंग था। प्रत्येक टकसाल में एक सर्राफ होता था जो धातु की शुद्धता और ढ़लने के बाद सिक्के की शुद्धता की जांच करता था। बैंकर के रूप में वे लोगों का धन सुरक्षित रखते थे और ब्याज पर ऋण देते थे। वे हुंडी जारी करते थे और दूसरों द्वारा जारी हुंडियों के बदले अपना कमीशन काटकर भुगतान भी करते थे।
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- प्रश्न- सल्तनतकालीन सामाजिक-आर्थिक दशा का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सल्तनतकालीन केन्द्रीय मन्त्रिपरिषद का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- दिल्ली सल्तनत में प्रांतीय शासन प्रणाली का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सल्तनतकालीन राजस्व व्यवस्था पर एक लेख लिखिए।
- प्रश्न- सल्तनत के सैन्य-संगठन पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- दिल्ली सल्तनत काल में उलेमा वर्ग की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- सल्तनतकाल में सुल्तान व खलीफा वर्ग के बीच सम्बन्धों की विवेचना कीजिये।
- प्रश्न- दिल्ली सल्तनत के पतन के कारणों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- मुस्लिम राजवंशों के द्रुतगति से परिवर्तन के कारणों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- सल्तनतकालीन राजतंत्र की विचारधारा स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- दिल्ली सल्तनत के स्वरूप की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- सल्तनत काल में 'दीवाने विजारत' की स्थिति का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- सल्तनत कालीन राजदरबार एवं महल के प्रबन्ध पर एक लघु लेख लिखिए।
- प्रश्न- 'अमीरे हाजिब' कौन था? इसकी पदस्थिति का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- जजिया और जकात नामक कर क्या थे?
- प्रश्न- दिल्ली सल्तनत में राज्य की आय के प्रमुख स्रोत क्या थे?
- प्रश्न- दिल्ली सल्तनतकालीन भू-राजस्व व्यवस्था पर एक लेख लिखिए।
- प्रश्न- दिल्ली सल्तनत में सुल्तान की पदस्थिति स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- दिल्ली सल्तनतकालीन न्याय-व्यवस्था पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'उलेमा वर्ग' पर एक टिपणी लिखिए।
- प्रश्न- दिल्ली सल्तनत के पतन के कारणों में सल्तनत का विशाल साम्राज्य तथा मुहम्मद तुगलक और फिरोज तुगलक की दुर्बल नीतियाँ प्रमुख थीं। स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- विदेशी आक्रमण और केन्द्रीय शक्ति की दुर्बलता दिल्ली सल्तनत के पतन का कारण बनी। व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- अलाउद्दीन की प्रारम्भिक कठिनाइयाँ क्या थीं? अलाउद्दीन के प्रारम्भिक जीवन पर प्रकाश डालते हुए यह स्पष्ट कीजिए कि उसने इन कठिनाइयों से किस प्रकार निजात पाई?
- प्रश्न- अलाउद्दीन खिलजी के आर्थिक सुधार व बाजार नियंत्रण नीति का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- अलाउद्दीन की दक्षिण विजय का विवरण दीजिए। उसकी दक्षिणी विजय की सफलता के क्या कारण थे?
- प्रश्न- अलाउद्दीन की दक्षिण नीति के क्या उद्देश्य थे, क्या वह उनकी पूर्ति में सफल रहा?
- प्रश्न- अलाउद्दीन खिलजी की विजयों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- 'खिलजी क्रांति' से क्या समझते हैं? संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- अलाउद्दीन की दक्षिण नीति के क्या उद्देश्य थे, क्या वह उनकी पूर्ति में सफल रहा?
- प्रश्न- खिलजी शासकों के काल में स्थापन्न कला के विकास पर टिपणी लिखिए।
- प्रश्न- अलाउद्दीन खिलजी का एक वीर सैनिक व कुशल सेनानायक के रूप में मूल्याँकन कीजिए।
- प्रश्न- अलाउद्दीन खिलजी की मंगोल नीति की आलोचनात्मक समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- अलाउद्दीन खिलजी की राजनीति क्या थी?
- प्रश्न- अलाउद्दीन खिलजी का शासक के रूप में मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- अलाउद्दीन की हिन्दुओं के प्रति नीति स्पष्ट करते हुए तत्कालीन हिन्दू समाज की स्थिति पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- अलाउद्दीन खिलजी की राजस्व सुधार नीति के विषय में बताइए।
- प्रश्न- अलाउद्दीन खिलजी का प्रारम्भिक विजय का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- अलाउद्दीन खिलजी की महत्त्वाकांक्षाओं को बताइये।
- प्रश्न- अलाउद्दीन खिलजी के आर्थिक सुधारों का लाभ-हानि के आधार पर विवेचन कीजिये।
- प्रश्न- अलाउद्दीन खिलजी की हिन्दुओं के प्रति नीति का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- सूफी विचारधारा क्या है? इसकी प्रमुख शाखाओं का वर्णन कीजिए तथा इसके भारत में विकास का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भक्ति आन्दोलन से आप क्या समझते हैं? इसके कारणों, विशेषताओं और मध्यकालीन भारतीय समाज पर प्रभाव का मूल्याँकन कीजिए।
- प्रश्न- मध्यकालीन भारत के सन्दर्भ में भक्ति आन्दोलन को बतलाइये।
- प्रश्न- समाज की प्रत्येक बुराई का जीवन्त विरोध कबीर के काव्य में प्राप्त होता है। विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- मानस में तुलसी द्वारा चित्रित मानव मूल्यों का परीक्षण कीजिए।
- प्रश्न- “मध्यकालीन युग में जन्मी, मीरा ने काव्य और भक्ति दोनों को नये आयाम दिये" कथन की समीक्षा कीजिये।
- प्रश्न- सूफी धर्म का समाज पर क्या प्रभाव पड़ा।
- प्रश्न- राष्ट्रीय संगठन की भावना को जागृत करने में सूफी संतों का महत्त्वपूर्ण योगदान है? विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- सूफी मत की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भक्ति आन्दोलन के प्रभाव व परिणामों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- भक्ति साहित्य पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- भक्ति आन्दोलन पर एक निबन्ध लिखिए।
- प्रश्न- भक्ति एवं सूफी सन्तों ने किस प्रकार सामाजिक एकता में योगदान दिया?
- प्रश्न- भक्ति आन्दोलन के कारण बताइए
- प्रश्न- सल्तनत काल में स्त्रियों की क्या दशा थी? इस काल की एकमात्र शासिका रजिया सुल्ताना के विषय में बताइये।
- प्रश्न- "डोमिगो पेस" द्वारा चित्रित मध्यकाल भारत के विषय में बताइये।
- प्रश्न- "मध्ययुग एक तरफ महिलाओं के अधिकारों का पूर्णतया हनन का युग था, वहीं दूसरी ओर कई महिलाओं ने इसी युग में अपनी विशिष्ट उपस्थिति दर्ज करायी" कथन की विवेचना कीजिये।
- प्रश्न- मुस्लिम काल की शिक्षा व्यवस्था का अवलोकन कीजिये।
- प्रश्न- नूरजहाँ के जीवन चरित्र का संक्षिप्त वर्णन कीजिए। उसकी जहाँगीर की गृह व विदेशी नीति के प्रभाव का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- सल्तनत काल में स्त्रियों की दशा कैसी थी?
- प्रश्न- 1200-1750 के मध्य महिलाओं की स्थिति को बताइये।
- प्रश्न- "देवदासी प्रथा" क्या है? व इसका स्वरूप क्या था?
- प्रश्न- रजिया के उत्थान और पतन पर एक टिपणी लिखिए।
- प्रश्न- मीराबाई पर एक टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- रजिया सुल्तान की कठिनाइयों को बताइये?
- प्रश्न- रजिया सुल्तान का शासक के रूप में मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- अक्का महादेवी का वस्त्रों को त्याग देने से क्या आशय था?
- प्रश्न- रजिया सुल्तान की प्रशासनिक नीतियों का वर्णन कीजिये?
- प्रश्न- मुगलकालीन आइन-ए-दहशाला प्रणाली को विस्तार से समझाइए।
- प्रश्न- मुगलकाल में भू-राजस्व का निर्धारण किस प्रकार किया जाता था? विस्तार से समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- मुगलकाल में भू-राजस्व वसूली की दर का किस अनुपात में वसूली जाती थी? ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर क्षेत्रवार मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- मुगलकाल में भू-राजस्व प्रशासन का कालक्रम विस्तार से समझाइए।
- प्रश्न- मुगलकाल में भू-राजस्व के अतिरिक्त लागू अन्य करों का विस्तार से वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- मुगलकाल के दौरान मराठा शासन में राजस्व व्यवस्था की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- शेरशाह की भू-राजस्व प्रणाली का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये।
- प्रश्न- मुगल शासन में कृषि संसाधन का वर्णन करते हुए करारोपण के तरीके को समझाइए।
- प्रश्न- मुगल शासन के दौरान खुदकाश्त और पाहीकाश्त किसानों के बीच भेद कीजिए।
- प्रश्न- मुगलकाल में भूमि अनुदान प्रणाली को समझाइए।
- प्रश्न- मुगलकाल में जमींदार के अधिकार और कार्यों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- मुगलकाल में फसलों के प्रकार और आयात-निर्यात पर एक टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- अकबर के भूमि सुधार के क्या प्रभाव हुए? संक्षिप्त विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- मुगलकाल में भू-राजस्व में राहत और रियायतें विषय पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- मुगलों के अधीन हुए भारत में विदेशी व्यापार के विस्तार पर एक निबंध लिखिए।
- प्रश्न- मुग़ल काल में आंतरिक व्यापार की स्थिति का विस्तृत विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- मुगलकालीन व्यापारिक मार्गों और यातायात के लिए अपनाए जाने वाले साधनों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- मुगलकाल में व्यापारी और महाजन की स्थितियों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- 18वीं शताब्दी में मुगल शासकों का यूरोपीय व्यापारिक कम्पनियों के मध्य सम्बन्ध स्थापित कीजिए।
- प्रश्न- मुगलकालीन तटवर्ती और विदेशी व्यापार का संक्षिप्त वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- मुगलकाल में मध्य वर्ग की स्थिति का संक्षिप्त विवेचन कीजिये।
- प्रश्न- मुगलकालीन व्यापार के प्रति प्रशासन के दृष्टिकोण पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- मुगलकालीन व्यापार में दलालों की स्थिति पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- मुगलकालीन भारत की मुद्रा व्यवस्था पर एक विस्तृत लेख लिखिए।
- प्रश्न- मुगलकाल के दौरान बैंकिंग प्रणाली के विकास और कार्यों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- मुगलकाल के दौरान प्रयोग में लाई जाने वाली हुण्डी व्यवस्था को समझाइए।
- प्रश्न- मुगलकालीन मुद्रा प्रणाली पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- मुगलकाल में बैंकिंग और बीमा पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- मुगलकाल में सूदखोरी और ब्याज की दर का संक्षिप्त विवेचन कीजिये।
- प्रश्न- मुगलकालीन औद्योगिक विकास में कारखानों की भूमिका का विस्तार से वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- औरंगजेब के समय में उद्योगों के विकास की रूपरेखा का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- मुगलकाल में उद्योगों के विकास के लिए नियुक्त किए गए अधिकारियों के पद और कार्यों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- मुगलकाल के दौरान कारीगरों की आर्थिक स्थिति का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- 18वीं सदी के पूर्वार्ध में भारतीय अर्थव्यवस्था की प्रवृत्ति की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- मुगलकालीन कारखानों का जनसामान्य के जीवन पर क्या प्रभाव पड़ा?
- प्रश्न- यूरोपियन इतिहासकारों के नजरिए से मुगलकालीन कारीगरों की स्थिति प